दिल खुशनुमा था फिर ये दर्द कहां चली
मै मस्त था अपने दुनिया में फिर क्यों मुड़ा उस गली
चल शांत करते है मन को
ये आंधी है दिल की, दिल से ही है चली ।
मै अकेला कर दिया उसे, उसने भी न जाने कितनो को
ये तो छोटा सिलसिला है दिल का
उस दर्द में ना जाने कितने दिल जले
न जाने कितने घर जली ।।।
थाम मन को ये जो आंधी है चली
रुकेगी थक के कहीं ना कहीं
तेरे गली या मेरे गली
इसका भी वही हश्र होगा जहा थी आग जली ।।।
मै मस्त था अपने दुनिया में फिर क्यों मुड़ा उस गली
चल शांत करते है मन को
ये आंधी है दिल की, दिल से ही है चली ।
मै अकेला कर दिया उसे, उसने भी न जाने कितनो को
ये तो छोटा सिलसिला है दिल का
उस दर्द में ना जाने कितने दिल जले
न जाने कितने घर जली ।।।
थाम मन को ये जो आंधी है चली
रुकेगी थक के कहीं ना कहीं
तेरे गली या मेरे गली
इसका भी वही हश्र होगा जहा थी आग जली ।।।
ये आग भी क्या खूब जली
खुद जली तो क्या जली
जला दी वो शारी मासूम कली
राख भी जला फिर खाक भी जला
बची खुची खोवाईश भी जली
मै खड़ा देख रहा था उस डायरी के पन्नों को
जिस पे लिखा था मै ना थी तेरी करमजली
मै सोचा उस बचा लू लेकिन
वो पन्ना भी जला और मेरी उंगली भी जली ।।
जल भुन गया सब फिर तेज से हवा चली
उड़ गए सब राख और वो खोयाब वाली पन्ना भी
मै बैठा सोच रहा
पहले आंधी फिर आग जली फिर हवा क्यों चली ???
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