Hindi/urdu shayari, kavita,poetry
कभी उपर कभी नीचे तरंगों की तरह
क्या हवा की झोका ही मेरा सब कुछ है
जैसे चाहे चलाए चाहे उड़ाए चाहे गिराए
कुछ तो होगा मेरा इसके सिवा
या यूहीं मै उड़ता, फिरता, गिरता रहूंगा
अपने ही नजरो में
जलील तो सारा जमाना अब कर है चुका
क्या बचा है मेरे सिवा ।।।।।
बेगैरत हो गया हूं मै
ना हया बचा है ना ही शर्म
वरना कौन देखता है सिसा
मुंह को काला करके ।।
इज्जत सुकून दोनों नहीं बचा अब
फिर भी पाव बढ़ते मेरे नबाबो की तरह
मुझसे ज्यादा हया तो अब पैरो में है
बस यूंही लड़खड़ा जाते थोड़ी सी उचाई देख ।।
सोचता है तू बहुत अपनी जमीर बेच के
थोड़ा तो सोच लिया होता है रकीब
खुद को खुद से बेचने से पहले ।।।
इश्क मुहबत प्यार व्यार बहुत हो गया
जरा खुद से भी तो नैना लडा
अगर थोड़ा सा भी शर्म बची हो तो
यूहीं गुजर गया बेवजह समय सारा
बस एक वजय की तलाश में
जब एक दशक बाद उस वजह पे पहुंच
तो सारा सफर बेवजह निकला ।।
कसम यूहीं नहीं थी पूरी उम्र तनहा रहने की
क्योंकि जब उनके साथ था तो कम तनहा नहीं था
जब नादान था तो एक अरमान था
ऊपर एक पारी रहती है बड़ों का बताया एक गया था
जमी पे उसे खोजा बहुत
वो मिल भी गई और मै मान भी गया
दसको बित जाने के बाद अब पता चला
मै तब भी नादान था और अब भी नादान था ।।
तू किसी को खुश करके
कब तक दुखी होगा
भर के उसका दामन खुशियों से
उसे भी दुख देगा और खुद को दुख देगा
अब ये सिलसिला टूटेगा
कोई खुद तोड़ेगा कोई टूटेगा
यहां रोज़ कुछ तोड़ के नया बनती है
तेरे भी टूटने से कुछ तो नया बनेगा
यहां रोज़ कोई टूटता तो कोई बनता है
टूटने दे जो टूट रहा कुछ तो नया बनेगा
हजारों टूट रहे यूहीं बवजय यहां
एक तू भी सही
तेरे टूटने से यहां घंटा किसी को फ़र्क पड रहा।।
रूह में उतरना है तो उतर जा
वरना नजरो से कब गीरोगे पता भी चलेगा
गिरे हुए को क्या गिराओ रकीब
अब तो धूल में फिसलना सीख लिए||
रहनुमा वो बदन ही है
जहा से हर लोग फिसल जाती
वरना औखो में तो लोग कैद किए जाते है||"