Wednesday, November 22, 2017

वो हमसे छूट रहे

जो हमारी साज थे, वो हमसे रूठ रहे  ।
जो हमारे सफर के हम-सफर थे,
वो हमसे छूट रहे।।

ये मैं क्या कर रहा कि,
कुछ छूट रहे, कुछ रूठ ।
मैं बैठा हूँ , मेरा दिल भी बैठा है,
ऑखो के सामने ही सब कुछ टूट रहे।
मैं बस देख रहा और बस देख रहा।
कि सब छूट रहे , सब रूठ रहे ।।।

मैं अपने को समझाऊ कि,
उनको जाके मनाऊ ,
समझ नही आता हाथ से सब
रेत की तरह कैसे सब छूट रहे।
किसको बताऊ किसको समझाऊ की
मुझसे कैसे रुठ, सब छूट रहे ।।

मैं साज की तरह हु बज रहा ।
फिर क्यों आवाज़ की तरह सब छूट रहे।।
दिल टूट रहा ऑखो से झरने छूट रहे कि ।
मुझसे कुछ छूट रहे , कुछ रूठ रहे ।।


दिल मे एक खामोशी है कि दिल ही खामोश है
खामोश मैं हु की खामोश मेरी जिंदगी है
जब मैं खामोशी से ही उस खामोशी देखना चाहा।
तो पता चला ख़ामोश वो नही खामोश मैं नही।
ख़ामोशी मेरी जिंदगी है ।

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