मैं खुस हु की ना खुश हूं
ऐसा क्यों ना कोई कहता था ।
सब कुछ था पर कुछ न था
तुम थे हम थे दुनिया था
फिर भी एक कमी सा क्यो रहता था।
ऐसा क्यों था वैसा क्यो था
हमेशा एक उलझन सा रहता था ।
क्यो था क्यो ऐसा ही था
कभी ये दिल न कुछ कहता था।
रोज़ घूमता फिरता रहता ।
फिर भी क्यो न कुछ मिलता था ।
सब कुछ मिलता
हवा और पानी , सूर्य और तारे
घर द्वार , बाग-बगीचे ।
मैं क्यो न उसमे मिलता था ।
सब खुश थे समय भी खुश था
फिर भी कुछ कमी सी रहता था
सब कुछ था पर मैं खुश न था
कुछ ऐसा दिल मुझसे कहता था ।
फिर भी -
मैं खुश हु की ना खुश हूं
ऐसा क्यो ना कोई कहता था ???
ऐसा क्यों ना कोई कहता था ।
सब कुछ था पर कुछ न था
तुम थे हम थे दुनिया था
फिर भी एक कमी सा क्यो रहता था।
ऐसा क्यों था वैसा क्यो था
हमेशा एक उलझन सा रहता था ।
क्यो था क्यो ऐसा ही था
कभी ये दिल न कुछ कहता था।
रोज़ घूमता फिरता रहता ।
फिर भी क्यो न कुछ मिलता था ।
सब कुछ मिलता
हवा और पानी , सूर्य और तारे
घर द्वार , बाग-बगीचे ।
मैं क्यो न उसमे मिलता था ।
सब खुश थे समय भी खुश था
फिर भी कुछ कमी सी रहता था
सब कुछ था पर मैं खुश न था
कुछ ऐसा दिल मुझसे कहता था ।
फिर भी -
मैं खुश हु की ना खुश हूं
ऐसा क्यो ना कोई कहता था ???
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